विद्यावाचस्पति "श्री आमोद कुमार मिश्र" जी काब्य पाठ करते हुए।
तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय के कुलगीत के रचनाकार विद्यावाचस्पति "श्री आमोद कुमार मिश्र" जी बहुमुखी रचनाधर्मी साहित्यकार हैं। इनकी कृतियों में राष्ट्रधर्म का ओज मुखर होता है। मातृभूमि भारती वंदना में जहाँ इनका कोमल स्वर है , वहीँ सामाजिक विद्रूपताओं के प्रति निर्भय आक्रोशपूर्ण जयघोष भी है। कविता , कहानी , नाटक , निबंध , काब्य , संस्मरण आदि विभिन्न विधा की रचनाएं मानवीय मूल्यों के उत्थान कि भावनाओं से संपृक्त हैं तथा भारतीयता के पवित्र मन्त्रों से अनुगुंजित हैं।
श्री आमोद कुमार मिश्र जी हिंदी और आंचलिक भाषा जैसे अंगिका के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। इनका जन्म इनके ननिहाल जसीडीह (देवघर ) में १७ /१२ /१९४७ में हुआ था। इनके पिता स्वर्गिय कविराज पंडित गिरिधर शास्त्री "भ्रमर " काब्य तीर्थ , " साहित्य मनीषी " थे एवं माता स्व. मनोरमा देवी थीं। इनकी पत्नी श्रीमती उमा मिश्रा हैं। किशोरावस्था से ये बड़े भाई आचार्य स्व. श्रीधर मिश्र "विनोद" एवं अपनी भाभी रुक्मिणी देवी के संरक्षण में रहे। ये भारत के बिहार प्रान्त के एक छोटे से गांव छत्रहार , बांका; के मूल निवासी हैं। इनकी प्रारंभिक शिक्षा जसीडीह , धनबाद , केलियासोल , मधुपुर आदि स्थानों में हुयी थी। इन्होने बहादुरपुर , भागलपुर से मैट्रिक , तेज नारायण बनैली , महाविद्यालय , भागलपुर से स्नातक ( हिंदी सम्मान ) तथा स्नातकोत्तर हिंदी विभाग , तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय से एम. ए. ( हिंदी) तथा विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ से विद्यावाचस्पति ( पी. एच. डी. ) कि शिक्षा प्राप्त की है।
इन्होने साहित्य सृजन के साथ फुसरी और किस्सा चंदो बिहुला बिषहरी जैसी फिल्मों कि पटकथा भी लिखी है .
इनकी साहित्य यात्रा की शुरुआत " एंगना उतरलै चाँद " कविता संग्रह से हुयी थी। लगभग २५ वर्षों कि साहित्य यात्रा के बाद तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय के कुलगीत के रचना का गौरव १ दिसंबर २००१ में तत्कालीन कुलपति डॉ. रामास्रय यादव की मौजूदगी में प्राप्त गया। कुलगीत का प्रारंभिक छंद इस प्रकार है।
अंग महाजनपद तव वंदन , शुभ संस्कृति उद्गाता।
वागीश्वरी वंदना मंदिर , घोर तिमिर दुःख त्राता।
उल्लेखनीय है कि उक्त गीत के तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय के द्वारा कुलगीत के रूप में चयन एवं अंग वस्त्रम के द्वारा सम्मान के बाद भागलपुर एवं बिहार तथा भारत के कई साहित्यिक संस्थाएं भी सम्मान देने में पीछे नहीं रहे । इसके पूर्व भी कई साहित्यविदों / श्रोताओं ने अनेक मंचों पर इनके ओजस्वी काब्य स्वर को सुना था। भागीरथी , पल्लव , प्रियप्रभात , प्रभात खबर , आर्यावर्त आदि में इनकी कई रचनाएं प्रकाशित हो चुकी हैं।
बंधुओं आज के बाद से आप सभी इस ब्लॉग में विद्यावाचस्पति "श्री आमोद कुमार मिश्र" जी की रचनाएं , विचार , सम्मान प्राप्ति एवं उनके विभिन्न साहित्यिक गतिविधियों एवं योगदानों के बारे में जानेंगें तथा चर्चा करेंगें।
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